चंदन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है,
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ।
हर शरीर मंदिर-सा पावन, हर मानव उपकारी है,
जहाँ सिंह बन गये खिलौने, गाय जहाँ माँ प्यारी है।
जहाँ सबेरा शंख बजाता, लोरी गाती शाम है;
जहाँ कर्म से भाग्य बदलते, श्रम निष्ठा कल्याणी है,
त्याग और तप की गाथायें, गाती कवि की वाणी है।
ज्ञान जहाँ का गंगाजल-सा, निर्मल है, अविराम है
जिसके सैनिक समर भूमि में, गाया करते गीता है,
जहाँ खेत में हल के नीचे खेला करतीं सीता हैं ।
जीवन का आदर्श यहाँ पर, परमेश्वर का धाम है ।
चंदन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है
रचनाकार - हरिमोहन विष्ट
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